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कविता

भूला अमृतसर बिसरी व्यास

शरद आलोक


अमृतसर की भोर शेफाली,
उत्सव से उल्लास नगर में
मधुर हवा संगीत सुनाए
कोयल डाली-डाली।

हर गली यहाँ कथा कहती है
होली और दीवाली,
युवा यहाँ खुशी मनाते
राजा बने सवाली।

लोरी और वैसाखी धरती
खेत बने दुल्हन से
मक्के और साग सरसों का
मौसम के रंग बरसें

ऊँचे मार्ग सेतु नीचे
रातोंरात बन रहे भवन नव
हम हैं आँखे मूँदे।

ये कैसी उन्नति है बाबू !
अमृतसर है, इसे बचाओ
बहुत हो चुके दंगे
जात-पात का भेद भुलाओ
इस धरती को गले लगाओ,
बहुत हो चुके नंगे।

हरमंदिर की शान यहाँ
जीवन में है शांति यहाँ,
गुरुओं का आशीष मिलेगा
सेवा व बलिदान जहाँ।
सीमाओं का अंत नहीं
जलियावाला बाग यहाँ
नहीं व्यर्थ जाने देंगे
अपने पूर्वजों का ज्ञान यहाँ।


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